“मैं अकेला नहीं हू”


मैं
एक मनुष्य हू, जिसकी भगवान द्वारा इस तरह से रचना की गई है कि मैं जो भी चाहूँ वह कर सकता हू या पा सकता हू| पर क्या मैं इस अनोखी रचना का सही उपयोग कर रहा हू? अक्सर यह सवाल मेरे मन में उठता रहता है, लेकिन हमेशा की तरह आज भी मैंने इस सवाल को बस यह कह कर टाल दिया है किक्यू दिमाग पर इतना जोर डालना, जैसा चल रहा है वैसे ही चलने दे, क्योंकि जो भी होगा सभी के साथ होगा, इस भीड़ में तू अकेला नहीं है

आखिर बात तो सोलह आने सच है, “मैं अकेला नहीं हू”| मैं अकेला हो भी कैस सकता हूं, दुनिया में 780 करोड़ की जनसंख्या, चलिए दुनिया छोड़िए क्योंकि यह तो बहुत बड़ी बात हो गयी, आप भारत को ही देखिए, 135 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में कोई आखिर अकेला कैसे हो सकता है | पर क्या ये सत्य है? यहाँ आप फिर से सोच रहे होंगे कि 135 करोड़ तो बहुत बड़ा आकड़ा है, इस गिनती में खुद को मैं कहा खड़ा मानू, तो चलिए मैं आपको ले चलता हू भारत के किसी छोटे से राज्य में जो दो वर्ष पहले ही बालिग हुआ है, जी हाँ सन 2018, 9 नवंबर को इस राज्य ने अपना अठारहवा जन्मदिन मनाया है, अब तक तो सायद आप समझ ही गए होंगे कि मैं कौन से राज्य की बात कर रहा हू, यहां भी जनसंख्या कुछ कम तो नहीं पर इस जनसंख्या में खुद को ढूंढ पाना थोड़ा आसान है | यह राज्य है देवो की भूमिउत्तराखंडजिसकी जनसंख्या है लगभग 1.17 करोड़ |

अब आते है असली मुद्दे पर, क्या हमने इन आकड़ों में कभी उन मूक प्राणियों को गिना है? जो मनुष्य से भी ज्यादा समझदार और वफादार पाये जाते हैं | नाम पुकारने में तो काफी अजीब सा लगता है, पर यहि हमारी मानसिकता है जिस पर हम हामी भी नहीं भर पाते | जी हाँ, मैं बात कर रहा हूकुत्तोंकी चाहे वो नर हो या मादा | फिर एक सवाल हर किसी के दिमाग में यहां पर जरूर आएगा की और भी तो मूक प्राणी है तो यहा एक ही प्रजाति की बात क्यों? यहि तो शर्म की बात है, क्या आपने कभी किसी इंसान को गाली या अपशब्द कह्ते हुए उसको गाय या बैल कहा है, सायद हाँ लेकिन ज्यादातर नहीं, सबसे पहले कुत्ता ही सभी की जुबाँ से बाहर आता है, यह कैसी विडंबना है मनुष्य जीवन की, वह इंसान को तो कुत्तों का दर्जा दे देता है मगर असली प्राणी को छोड़ देता है, क्या यहि भगवान की अनोखी रचना है?

आप खुद ही सोचिए, जब आप एक ऐसे प्राणी को थोड़ा सा भी स्नेह नहीं दे सकते जो कुछ बोल नहीं सकता, जो बिना बात के आपको हानि भी नहीं पहुँचाता तो क्या आप कभी उस इंसान से निसंदेह स्नेह कर पाएंगे जो बोल भी सकता है और साथ ही आपकी दिनचर्या को भी बदल सकता है, इस बारे में एक बार विचार जरूर करे शायद आपकी मानसिकता इसके प्रति कुछ हद तक बदल जाये|

उपर दर्शाए गए आकड़े और निसंदेह स्नेह का उदाहरण हमे साफ़-साफ़ दिखाते है कि दुनिया की इस भरी महफ़िल में इंसान कितना अकेला हो चुका है, कहने को हम सब साथ है, लेकिन मैं अकेला ही हू |

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