'पंछी और पिंजरा'
जीना नहीं मुझे इस कैद में,
मैं
आजाद रहना चाहता हूं,
इंसानों
की कुछ मजबूरी के
कारण,
मैं
सहमा-सहमा रहता हू,
पंख
मिले हैं मुझे, इस
जीवन में,
फिर
भी डब्बों में बंद रह
जाता हू,
आजादी
के इस जीवन में
भी,
मैं
घरों का दिखावा बन
जाता हू,
हे मनुष्य, क्यू नहीं समझता
तू दर्द मेरा,
जो अपनी रोटी के
लिए, हर लेता है
जीवन मेरा,
माना
तुझसे कई गुना कमजोर
हू मैं,
फिर
भी हक नहीं तुझे,
कैदी बनाने का मुझे,
सब कुछ मिला तुझे,
बस एक पंखों को
छोड़ कर,
तभी
शायद तू मेरा सौदा
करता है,
उड़ने
की चाहत तेरी भी,
इसलिए
मुझ संग ऐसा करता
है,
जीने
दे मुझे कुछ लम्हे,
छोटा सा मेरा जीवन
है,
हे मनुष्य, यह विनती है
तुझसे,
मत बन इतना निर्दयी
तू,
की उड़ना ही भूल जाऊँ
मैं,
जीवन
जीने से पहले ही,
मिट्टी
में मिल जाऊँ मैं,
मिट्टी
में मिल जाऊँ मैं
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