“परिभाषा : जीवन की”

 


कहा जाता है कि इंसान अपनी गलतियों से ही सीखता है और गलतियां तभी होती है जब आप किसी कार्य को स्वेच्छा से नहीं बल्कि एक अधूरे मन से करते हैं, परन्तु आप बचपन की बात करे, कुछ ही कामों को छोड़ कर सभी कार्य हर कोई मन लगाकर करता था और फिर भी अक़्सर गलतियां हो जाती थी, यहां पर यह कहना भी गलत होगा कि स्वेच्छा ही इंसान को गलतियां करने से रोकती है | अक्सर एक इंसान किसी काम को बहुत मन लगाकर करता है और फिर भी गलतियां हो जाती है |

तो क्या हमे यह मान लेना चाहिए कि गलतियां इंसान के जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग है और इसे नकारा नहीं जा सकता है | आप जो कुछ भी सीखते हैं वह अपने अनुभव (जो कि ज्यादातर गलतियां ही होती है) से सीखते है, क्योंकि किसी भी प्रकार के काम को पूरा करने में यदि आपके पास सम्पूर्ण हुनर ना हो तो कार्य पूरा करना थोड़ा कठिन सा हो जाता है और यहि पर हम गलती करते हैं | ध्यान देने वाली बात तो यह है, एक बार गलती हो जाने के बाद अक्सर लोग उस कार्य को छोड़ देते हैं, जो कि इंसान की सबसे बड़ी समस्या है |

क्या आपने कभी सोचा है? कि जब गलतियां हमे कुछ नया सिखाती है तो वह गलत कैसे हो सकती है, शायद कुछ गलत चीज़े हमारे दिमाग में पहले से ही घर कर चुकी है जिसके कारण कुछ गलतियों से हम अच्छा भी सीख रहे हो तो हमे वह गलत ही लगता है, और इस तरह से हम उस कार्य से ना ही कुछ सीखते हैं, बल्कि साथ में उस कार्य को आगे भी नहीं करते | इस बिंदु से शुरू होती है एक नकारात्मक ऊर्जा जो हमे कभी आगे नहीं बढ़ने देती है|

स्कूल के दिनों की बात है, सातवीं कक्षा में एक अच्छे इंग्लिश मीडियम स्कूल में मेरा दाखिला हुआ, जहाँ मुझे समझ आया की हमारा प्यारा देश भारत अंग्रेजों से आजाद तो सन 1947 में हो गया था परंतु आज भी मेरे देश में उन्हीं की भाषा को सीखने या सीखाने में जोर दिया जाता है | मैं हमेशा ही मंच (स्टेज) पर जाने का इच्छुक था, परंतु अंग्रेजी भाषा का ज्यादा और सही ज्ञान होने के कारण मैं खुद को कभी वहाँ तक नहीं ला पाया, मौके भी बहुत मिले, पर डर था गलतियों का, जो गलतियां मुझे कुछ नया और अच्छा सीखाने वाली थी, क्योंकि सब कुछ तो हमारी मानसिकता पर निर्भर है और वहाँ कभी कुछ सीखने की चाहत ही नहीं हुई |

किसी ने क्या खूब कहा हैइंसान की मजबूरियां, इंसान को सब-कुछ सिखा देती है”, एसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ | उम्मीद करता हु आप सभी को अपने स्कूल के दिन भी याद होंगे क्योंकि वह कभी भूले जाने वाले पल होते है, स्कूल में रोज सुबह प्राथना के बाद बारी बारी से बच्चों को कविताएँ, कहानियाँ, समाचार या कोई विचार सभी बच्चों के समक्ष मंच पर जा कर सुनाने होते थे, और इसी सिलसिले में मेरी भी बारी आयी | डर, घबराहट, बदनामी, बेइज्जती और क्या क्या नहीं, जितनी भी नकारात्मकता पाई जाती है वह सब मेरे दिमाग में चुकी थी | मुझे एक विचार (thought) बोलने को कहा गया, अच्छे से याद कर लेने और कई बार घर पर उसको बोलने का प्रयास करने के बाद भी मैं मंच पर बोलने का साहस नहीं जुटा पा रहा था |

"ईच्छा हो कुछ पाने कीतो खुद ही से तू पूछना,

क्यों डरता है कुछ करने सेजब तुझे है सबकुछ जीतना,

साहस तो कर उसे पाने काक्यों डर है तुझे खो जाने का,

आज नहीं तो कल जानेगाफॉर्मूला तू उसे पाने का "

बहुत प्रयासों के बाद मेरे दिमाग में आया की मैं इतना नकारात्मक किस बात को लेकर हु, जो मुझे बोलना है वो मुझे अच्छे से आता है, उसमें किसी भाषा के ज्ञान की भी जरूरत नहीं है, और रहीं बात बेइज्जती की तो सामने खड़े सुनने वाले तो सब अपने ही साथी है, उनकी बातों को क्यू इतनी गहराई से सुनना की मुझे अपनी बेइज्जती लगे | और यहि वह पल था, जहां मैंने खुद को मजबूत बनाकर केवल आगे बढ़ने की ठानी बल्कि साथ में यह भी ठान लिया कि अगर जीवन में कुछ पाना है या अपने सपने सच करने है, तो मैं कभी भी किसी काम से पीछे नहीं हटूंगा, भले ही मैं कितनी भी गलतियां क्यों करू, मैं पीछे नहीं हटूंगा|” 

इसी सोच के साथ मैं मंच में गया और एक गहरी साँस लेने के बाद अपना विचार प्रकट किया, बोलते समय मुझे कोई भी सामने नहीं दिखाई दिया पर विचार खत्म हो जाने के बाद तालियों की गड़गड़ाहट ने मेरे हौसले को और भी मजबूत कर दिया | उस दिन से लेकर आज तक, मैं अपने सपनों को सच करने की राह में कई ठोकरें खा चुका हू लेकिन हिम्मत नहीं हारा और पूरे विश्वास के साथ कुछ नया सीखने की जिद में अभी भी गलतियां करता हु, जो मुझे अवश्य ही हमेशा कुछ नया सिखाती है|

जीवन की राह में, रुकावटें अनेकों आएंगी,

जो लड़ना उनसे सीख गया,

सफलताएँ उन्हीं के संग रह जाएंगी |”


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