“समय और मैं”



यूहीं 
वक़्त गुज़र जाता है सारा
जब भी कुछ सोचने बैठूं
और लोग चिंता खाली समय की करते हैं,

व्यर्थ तू है, वह समय नहीं
जो बस चिंतन ही उसका करता है
और वह समय है जो चलता ही रहता हैं,

क्यों तू इतना वंचित है ख़ुद से
जानता है उसे तू रोक नहीं सकता
फिर भी उस कारण तू भटकता ही रहता,

उठ कर देख कभी सूरज से पहले
चंदा के धीमे उजियारे में,

उस दिन समय तेरा होगा
जीवन के प्रबल बहारों में,

सुन कभी उन चहचहाती नन्ही जानों को
संदेश देती है सभी इंसानों को,

उठ खड़ा हो मनुष्य
समय नहीं अब सोने का,

यदि चाहता है समय से आगे चलना
तो त्याग दे कुछ पल और सपनों का गहना,

तू चिंतन कर पर समय का नहीं
समय तो चला जाएगा,
रह जाये जो पास तेरे और कारण बने बहारों का|

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