“लालसा : पतन का कारण”




सदैव ही इंसान को अधिक पाने की लालसा होती है, यह जानते हुए भी कि वह अपने साथ कुछ भी लेकर नहीं जा सकता है| परन्तु इंसान यह समझने को ही तैयार नहीं है कि अधिक पाने की लालसा में वह खुद का ही अंत और नजदीक बुला रहा है या यूं कहें कि वह अपने ही पतन का कारण बन रहा है| हम अक्सर यही तुलना करते रहते हैं कि किसी इंसान को बहुत अधिक मिला है तो किसी को ना के बराबर, लेकिन यह असत्य भी नहीं है| क्योंकि तुलना भी उसी की होती है जहां कुछ ऊँच नीच हो या हमारे भीतर ही विचारों में असमानता का भाव हो| कभी कभी तो यह समझ पाना भी मुश्किल हो जाता है कि क्या इंसान अधिक से अधिक पाने के बाद अपनी लालसा को त्याग देगा? या तब भी वह उस ही परिस्थिति में होगा जैसा कुछ होने पर था, इस विषय पर कुछ कहना उचित नहीं होगा|

त्याग करना जो सीख गया

शांत जीवन वह पायेगा,

जीवनमरण के इस दौर में

सफल वह बन जाएगा

मौजूदा हालात (मार्चअप्रैल 2020) भी कुछ यहि बयां करते है, ख़ुद को उपर दिखाने और अधिक पाने की लालसा ने किस तरह एक देश ने कई देशों की कमर तोड़ दी है| आर्थिक स्थिति कुछ इस प्रकार हो चुकी है मानो देश कंगाली की हालत में हो, पर क्या यह उचित है? यदि हां तो, क्यों? नहीं का जवाब शायद कुछ हद्द तक मैं आपको दे पाऊ, क्योंकि किसी से आगे बढ़ने या अधिक शक्तिशाली बनने के लिये आप पूरे राष्ट्र का नुकसान करे यह कभी भी उचित नहीं हो सकता है| कुछ लोग इस दौर को प्रकृति का संदेश मानते हैं तो कुछ इसे इंसान द्वारा की गई एक भूल, क्योंकि जो असलियत में है वह तो कुछ और ही है और किसी पर बिना पुख्ता सबूत के इल्ज़ाम लगाना भी एक दण्डनीय कार्य है| आप कुछ भी कहें, आख़िर बात तो लालसा की ही है, प्रत्येक व्यक्ति यह जानते हुए भी कि इस परिस्थिति से जूझने के लिए उसके पास प्रयाप्त चीज़े हैं फिर भी वह अपने पास अधिक भंडार भरने में लगा हुआ है| क्या यह लालसा नहीं है?

छल-कपट ही रह गया

जीवन जीने का आधार,

कौन किसको रोक सका

सबकी नैया खड़ी मझधार”

यदि हम बात करें पाँच तत्वों (भूमि, आकाश, हवा, पानी और अग्नि) की जिनसे मिलकर मानव शरीर का निर्माण किया गया है और मरने के पश्चात यह तत्व प्रकृति में विलीन हो जाते हैं| अब आप इसे समझने की कोशिश करेंगे तो ज्ञात होगा कि इंसान अपने साथ अपना नग्न शरीर भी लेकर नहीं जा सकता तो फिर इतनी लालसा किस बात की? यह पाँच तत्व भी तभी तक आपके लिए लाभदायक है जब तक यह एक उचित मात्रा में आपके पास उपलब्ध हो|

बात करें भूमि की जिसपर आप अपना मालिकाना हक दर्शाते हैं वह जितनी उचित मात्रा में उपलब्ध हो उतना ही एक व्यक्ति शांति और सुकून से जीता है, और यदि वह अधिक हो तो इंसान को उतना ही और अधिक पाने की लालसा होती है, जिस कारण वह हमेशा ही हताश और निराश रहता है|

आकाश, एक एसा शब्द है जिसका कोई अंत नहीं इसे अक्सर शून्य (zero) भी कहा जाता है| व्यक्ति को ज्ञात है कि वह कुछ भी कर ले इसे नहीं पा सकता, और शायद यहि कारण है वह इसकी लालसा भी नहीं करता| तो क्यों आकाश या आसमान की भांति हम और चीजों की लालसा को भी त्याग दें, क्या इससे हमारा जीवन खुशियों से नहीं भर जाएगा?

इसी प्रकार हवा, पानी और अग्नि(ईंधन, उदहारण के लिए), बाकी के तीन तत्व को पाने के लिए भी व्यक्ति हमेशा ही सुर्ख़ियों में पाया जाता है, यहां तक की यह भी माना जाता है यदि तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो उसका कारण पानी हो सकता है| इससे आप समझ सकते हैं कि किस प्रकार यह लालसा मनुष्य जीवन का नाश कर सकती है|

लालसा को त्यागने के लिए कबीरदास जी का यह दोहा:

साईं इतना दीजिए जामे कुटुंब समाय

मैं भी भूखा रहु साधु भी भूखा जाए”

कहता है, “हे ईश्वर अगर देना ही चाहते हो तो इतना दो जिससे कि मेरा या मेरे कुटुंब का निर्वाह हो जाये और जिसमें मैं भी भूखा ना रहूं, ना ही कोई साधु मेरे घर से भूखा जाय

यदि कुछ पाने या चीजों की लालसा को एक बार के लिए अलग रखा भी जाये तो इंसान या व्यक्ति को नींद की भी लालसा है, जी हाँ नींद| जिससे वह कुछ भी नहीं पा सकता फिर भी उसे अधिक से अधिक नींद की आवश्यकता लगती है|

इन्हीं सभी कथनों के साथ मैं आप सभी से विनती करता हूं की लालसा को त्याग दें, इंसान का जीवन अत्यधिक सुन्दर है उसे कुछ खोने या पाने में ना गंवाए परंतु शांति पूर्वक व्यतीत करें|

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